गीत
जागी तृष्णा इन अधरों पर
महक उठी मन की कस्तूरी..!
प्रियतम की चंचल चितवन से
मिटी जिया की प्यास अधूरी..!!

सागर मध्यम उठें हिलोरें
उस मधुर मिलन की आस लिए..!
सरिता ढूॅंढ रही है पथ को
पत्थरों संग संवाद किए..!
नदी प्रीत में खारी होने
तय कर आई मीलों दूरी..!

जागी तृष्णा इन अधरों पर
महक उठी मन की कस्तूरी..!

साॅंसें हो गई महक मोगरा
चंदन सम अंग -अंग हुआ..!
गीत सुनाए गुप -चुप धड़कन
मौन हो मुखरित, मृदंग हुआ..!
मन वीणा के तार जुड़े तो
आज हुई हूॅं साजन पूरी..!

जागी तृष्णा इन अधरों पर
महक उठी मन की कस्तूरी..!!

मान सरोवर के हंसों सा
युगल रूप का देखा सपना..!
सिर्फ चुगेगें सच्चे मोती
संग प्रीत की माला जपना...!
दुग्ध पान कर तज देंगे जल
बने अपन जीवन सिंदूरी

जागी तृष्णा इन अधरों पर
महक उठी मन की कस्तूरी..!!

सीमा शिवहरे सुमन

Hindi Shayri by Seema Shivhare suman : 111590069
shekhar kharadi Idriya 4 years ago

अति उत्तम प्रस्तुति..

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