ईमानदारी
मैं अपनी पत्नी के साथ ट्रेन द्वारा मुंबई की यात्रा पर जा रहा था। उस समय ई टिकिट प्रारम्भ ही हुआ था। यात्री तो यात्री अनेक टी.सी. भी उसके नियम कायदों से पूरी तरह परिचित नही थे। एक ही ई टिकिट पर हम दोनो का आरक्षण था। मेरी सीट को कंफर्म हो गई थी लेकिन मेरी पत्नी की सीट अभी भी वेटिंग में चल रही थी तभी टी.सी. आया, उसने टिकिट देखा और बोला कि चूकि इस टिकिट की दोनो सीटें कंफर्म नही है इसलिए यह टिकिट कैंसिल मानी जाएगी। हमारी अनुनय विनय पर उसने दो सीटें हमें उपलब्ध करा दी लेकिन लेकिन दोनो का पैसा चार्ज कर लिया। हम लोग निश्चिन्त होकर यात्रा करने लगे।
उधन वह टी.सी. परेशान था। उसे समझ नही आ रहा था कि उसने जो किया है वह सही है या नही। कही उसने हमसे गलत रूपया तो नही ले लिया। उसने फोन करके अपने मुंबई कार्यालय से वस्तु स्थिति का पता लगाया। उसे पता लगा कि यदि उसके पास सीट थी तो उसे वह हमें निशुल्क देनी चाहिए थी और यदि चार्ज ही कर रहा था तो उसे केवल एक टिकिट का पैसा लेना चाहिए था। दो सीट का पैसा लेना तो पूरी तरह गलत था। यह पता लगते ही वह टी.सी. हमारे पास आया और उसने हमारा पैसा वापिस किया और क्षमा मांगी।
हम उसकी सज्जनता और ईमानदारी देखकर अभिभूत हो गए कि आज भी हमारे देश में ईमानदार और कर्तव्यपरायण नागरिक है जो अपना काम पूरी ईमानदारी और मुस्तैदी से कर रहे है। यदि वह चाहता तो रूपए अपने पास रख सकता था क्योंकि हमने उससे किसी प्रकार का विरोध नही किया था। हमने उससे पूछा कि आपने इतना कष्ट क्यों किया तो वह बोला यदि मैं यह पैसा गलत ढंग से आपसे ले लेता तो यहाँ तो ठीक है लेकिन भगवान के पास जाकर क्या जवाब देता। मैंने प्रार्थना में अपना सर झुकाया है परंतु शर्मिन्दगी से कभी सर नही झुकाया, जो मुझे झुकाना पडता। अब मैं निश्चिन्त हूँ कि मैने अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाया है।