जाना चाहता है हर कोई
आज जुर्म कि तह तक
जरा आंखे भी खोल लीजिए...
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हम भी ज़िम्मेदार कुछ हद तक
पहले इस बात का स्वीकार कीजिए...
शायद होगा कानून कुछ हद तक अधूरा
पर हमारी भी गलती ये है
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आंख मोड़ कर, चल दिए थे जिस पल
गुन्हेगार हम तबसे बने हैं
चलो, अहसास तो हो गया कितनों को
यही तस्सली के लिए काफी है कहना
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सचमुच बदलाव चाहते हो तो बस
बेझिझक,
बाघी बनकर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना
#तह