ओ राही जरा होश में चल
हर कदम जरा संभल कर चल,
कितनी ही पतवारें डुबी यहाँ
इश्क़ के भंवर से संभल कर चल

हर घड़ी कोई गैर होगा हमसफ़र
आये कोई मजिंल तक, देखने को चल
मगर.....
कांटे चुभें तो भी खैरियत है
फरेबी गुलों से संभल कर चल

वक्त के तकाजों से मन उदास जरूर है
जानता हूँ....
हर रोज़ ख्वाहिशें चितायें बनती है
जानता हूँ....
बात बेमानी सी है फिर भी सुन चल
'जीना है गर तो लाशों के बगल से चल'

#M -kay

Hindi Poem by M-kay : 111581685

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