सैनिक की पीडा
अरूणाचल प्रदेश का एक शहर है तवांग। यह भारत की अंतिम सीमा पर स्थित है। चीन के साथ युद्ध में हम पराजित हुए थे। इस शहर में शहीदों की स्मृति में स्मारक बना हुआ है। इसमें हम क्यों हारे इसके कारणों को दर्षाया गया है। उसमें दर्शाए गए कारणों में प्रमुख है तत्कालीन प्रधानमंत्री के पंचशील के सिद्धांत एवं विदेश मंत्री की अदूरदर्शिता तथा अनुभव का अभाव, चीन की ताकत को कम आंकना, हमारी सेना की तैयारी का न होना, हमारी संचार व्यवस्था एवं गोपनीय सूचनाओं को प्राप्त न करने की क्षमता इत्यादि।
इस युद्ध में हमारे अनेक सैनिकों ने बलिदान दिया। तवांग शहर का निवासी एक सैनिक अंतिम समय तक डटा रहा। उसने अपनी चौकी नही छेाडी और अंत में वीरतापूर्वक लडते हुए अत्यंत घायल हो गया। उसकी अस्पताल में यही अंतिम इच्छा थी कि देश का हर युवा इस हार का बदला लेगा एवं अपनी हारी हुई भूमि को पुनः चीन से प्राप्त करेगा। कुछ दिनों पश्चात उसकी मृत्यु हो गई परंतु उसकी आत्मा को आज तक शांति नही मिली। आज भी उस चौकी पर रात में वह सैनिक हाथों में बंदूक लिए नजर आता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जब तक युद्ध में खोई हुई अपनी प्रतिष्ठा एवं भूमि को वापिस प्राप्त नही कर लेते तब तक उसकी आत्मा को शांति नही मिलेगी। सेना में तैनात जवान कभी कभी उसकी आवाज सुनते हुए ऐसा महसूस करते है कि वह वही कही पर मौजूद होकर अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तैनात है। आज भी राष्ट्र के प्रति उसके समर्पण एवं बलिदान को याद कर हम अपने को गौरवान्वित महसूस करते है।