ना अपनों के लिए वक्त है,
ना सपनों के लिए तक है,
देखो केसै गुम यहां हर शक्श है !

भाग रहे न जाने कैसी सोहरत के पीछे ,
मरने पर जो साथ नहीं आने वाली वैसी दौलत के पीछे,
छूट गए दिलों के रिश्ते बहुत पीछे !

मंजिल मिली,पर मंजर गुम है ,
ये कैसा वक़्त है , जो होके भी नहीं है !

-Neha Kariya

Hindi Shayri by Neha Kariya : 111580112

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