ना अपनों के लिए वक्त है,
ना सपनों के लिए तक है,
देखो केसै गुम यहां हर शक्श है !
भाग रहे न जाने कैसी सोहरत के पीछे ,
मरने पर जो साथ नहीं आने वाली वैसी दौलत के पीछे,
छूट गए दिलों के रिश्ते बहुत पीछे !
मंजिल मिली,पर मंजर गुम है ,
ये कैसा वक़्त है , जो होके भी नहीं है !
-Neha Kariya