आजकल
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हर सुबह हो नयी
हर दिन हो नया
हम भी करे कुछ
वो भी हो नया ।

उब जाता है मन
घर से ऑफिस
ऑफिस से घर
पता नही मन है किधर

सुरज कब है आता ?
चंद्रमा कब है चमकता ?
मै तो स्वयं मे हूँ डुबा
आजकल का नही पता ।।
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-अरूण वि.देशपांडे- -पुणे.

-Arun V Deshpande

Hindi Poem by Arun V Deshpande : 111580026

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