ये कैसी घड़ी आन पड़ी
जलती है चिता सपनों की
कत्ल हो रही हर आरजू
अरमानों की है राख पड़ी
मारते रहे सब उसे धीरे धीरे
और वो मुस्कुराती रही
पहले जीती थी खुद के लिए
अब दूसरों के लिए
जीने चल पड़ी
रखा कदम एक नयी डगर पर
औरों के लिए
पथ प्रदर्शक बन पड़ी
किया फैसला खुलकर जीने का
बदल रास्ता आगे बढ़ चली
खुद के कत्ल की मनहूस घड़ी भी
बना ली उसने अनमोल घड़ी।।

-Sakhi

Hindi Poem by आशा झा Sakhi : 111579504

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