मन ही मन मैं,
तेरा नाप लेकर,
बनाती रही
तेरे तन के कपड़े   
नहीं ये छोटा होगा,
नहीं ये होगा बड़ा,
करती खुद से
जाने कितने झगड़े
तन के कपड़े …!  
….
तू गोरी होगी?
या सांवरी?? मैं भी बावरी बन
सजाती रही गुडि़या पे
तेरे वो कपड़े
तन के कपड़े …!!   

झलक तेरी
आंखों में लेकर सोती तो,
ख्‍वाबों में फिरती
तुझको पकड़े-पकड़े
तन के कपड़े …!!!
...
मैं अपना बचपन
फिर से जी लूंगी
तू आ जाएगी तो,
मिट जाएंगे
मन के ये सारे झगड़े
तन के कपड़े …!!!!

Hindi Poem by Seema singhal sada : 111579316
shekhar kharadi Idriya 4 years ago

अत्यंत सुंदर अभिव्यक्ति

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now