सीमा शिवहरे सुमन
ग़ज़ल
मेरी ज़ुबां पे तुम्हें ऐतवार है कि नहीं
जनाब-आली कहो हमसे प्यार है कि नहीं
नशा हुआ ही नहीं आपको, कभी पीकर
पिया जो जाम नज़र से खु़मार है कि नहीं
तड़प रहे हैं उन्हें एक बार मिलने को
उन्हें भी मेरी तरह इंतज़ार है कि नही
ज़रा सी चोट लगी तिलमिला गए साहिब
दिया है आपने क्या ,कुछ शुमार है कि नहीं

फ़िदा हैं लोग शगुन बाकमाल आया है
ज़रा सा देख तो ले चंद्रहार है कि नहीं

वहा के लोग लहू हो गए अमर सारे
तेरी ‌ वतन के लिए जाॅंनिसार है कि नहीं

मेरे हबीब ज़रा देखकर चला खंज़र
गया जिगर के अभी आर- पार है कि नहीं

सीमा शिवहरे सुमन

Hindi Shayri by Seema Shivhare suman : 111576685

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