में किसान का बेटा हु, किसान की पीड़ा लिखता हूं,
कॄषि प्रधान देश मे आत्महत्या करता में दिखता हु।
कर्जा बढ़ रहा है, बोझ बढ़ रहा है मेरे बेलो का,
करोड़ो रूपये खर्च कर के, क्या करोगे मेलो का।
देश के सरताज के सामने में रोज रोज चीख रहा हु।
भूख मेने पूरे जग की मिटाई, में अब भूख सोता हु,
बड़ी बड़ी कोठी वाले देखो में भीतर भीतर रोता हु।
अपनी यह जिंदगी की दौर में रोज रोज खींचता हु।
गजब का इंसाफ है हुजूर, मालिया जैसे कई भागे है,
मेरा खेत हजम करने के तीर तुमने मेरे पर तांगे है।
मनोज में बेबस किसान की कहानी रोज लिखता हूं।
मनोज संतोकि मानस