पूरी जिंदगी, 
मै सोचता रहा, 
जीवन ने मुझे चुना, 
सताने के लिए, 
अपने आगे घुटने टेकने के लिए, 
और दर दर ठोकर लगाने के लिए, 
पर ये कहाँ तक सत्य था?
इसकी खोज मे जब मै,
अपने ही स्थूल शरीर से बाहर निकला, 
फिर देखा, 
जीवन वो नही था,
जो मैने देखा, 
उसे मैंने चुना था, 
अपने लिए, 
ताकि खेल कर सकूँ,
आखिर ध्यान मे भी कब तक रह सकता था मै, 
निरस हो जाता ध्यान भी, 
गर थोड़ा मनोरंजन नही होता।
-Krishnakatyayan

Hindi Poem by Krishna Chaturvedi : 111574402

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