जीसकी चुड़ीयां कभी खनकती थी,
वो चुड़ीयां आज तुट गई;

जो हरपल चिड़िया सी चहेक ती थी,
वो आज खामोश हो गई;

जीसकी मांग सिंदूर से चमक ती थी,
वो मांग आज सुन्नी हो गई;

जीसकी हंसी कभी रूकती नहीं थी,
वो आज रो रो के थक गई;

कल तक जो सुहागन कहलाती थी,
पति के मरते #विधवा हो गई;

समाज की यह केसी रीत है "विएम"
एक रंगीन जींदगी,
पलभर में रंगहीन हो गई;

#विधवा

Hindi Poem by વિનોદ. મો. સોલંકી .વ્યોમ. : 111574371

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