और कितने मुखौटे,
धरे है तूने अपने तन पर।
राजदार तू खुद है अपनी सारी बेईमानों का।
फिर भी रखता है तू सब का हिसाब,
बड़ी शिद्दत से सब की अच्छाइयों का।।
किसने दिया है तुझे हक,
कि तु करें हिसाब दूसरों की ईमानदारी का,
है हिम्मत तो खुद से कर एक ईमानदारी
गिरेबान में अपने झांक और
हटा यह बेईमानी का मुखौटा जो तूने पहना है।
है हिम्मत ,है हिम्मत तो बात कर
आमने सामने पूरी सच्चाई से,
गीदड़ भभकी देना बंद कर
निकाल के फेक यह गीदड़ का मुखौटा।
सामने बैठ ओढ़कर सच्चाई का मुखौटा।।
दिखावे के मुखौटे से तु दुनिया के सामने भला बनता है,
पर क्या कभी खुद से तू नजरे मिला पाता है।।
शर्म कर ,शर्म कर और थोड़ी इंसानियत धर,
फेंक के दिखावट का मुखौटा इंसानियत की कदर कर।
पर तू रहने दे यह तेरे बस की बात नहीं है,
पर तू रहने दे यह तेरे बस की बात नहीं है।
सच्चाई के साथ जीना यह  तेरी औकात नहीं

स्वाति सिंह साहिबा

Hindi Poem by Swati Solanki Shahiba : 111573089

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