वो कहते गए बस हम सुनते गए
झूट के सहारे कई बातें बुनते गए
प्यार सच मे था या था बस छलावा
दिल से थी मोहब्बत या था दिखावा
वो धीरे धीरे ज़िंदा होते गए अपनी चाल में
हम धीरे धीरे फँसते गए उनके मोह जाल में
ख़ुद उलझ गए तब अपने ही बनाये जवाब में
रिश्ता डगमगाया जब हुआ उजाला नकाब में
-आलोक शर्मा