तुमने देखा है कभी मृत कविताओं को..
मैंने देखा है..
वो जो गुलाब प्रेमिका की किताब में छिपा हुआ था, उसकी सूखी हुई पंखुड़ियों में..
किसी ख़ूबसूरत पेड़ पर पत्थर से लिखे गए नामों में..
विरह की आग में झुलसते हुए प्रेमी में..
किसी देह से धीरे-धीरे निकलते प्राणों में..
टूटी हुई चूड़ी में..
..
मैंने देखा है मृत कविताओं को बाबा के माथे पर उभरी लकीरों में..
माँ के हाथों की नरमी को बदलती हुई झुर्रियों में..
किसी मकान की चहल-पहल को बदलती हुई ख़ामोशी में..
व्यक्त की गई भावनाओं के ठुकराए जाने में..
बेघर मनुष्य के हवेलियों को देखते हुए चेहरे पर आने वाले भावों में..
मैंने देखा है..
हँसी के पीछे छिपाए गए आँसुओं में..
किसी की दम तोड़ी हुई चीख में..
खिलौनों को देख कदमों को रोक लेने वाले बचपने में..
समझदारी के नाम पर घुटने वाले हर इंसान में..
मैंने हर दुःख में केवल मृत कविताएं देखी हैं..
💔
Pc- me
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