तुमसे मोहब्बत करना आसान नहीं है, मगर आसान है लिखना। हाँ मगर यह भी सच है कि, मैंने तुम पर तमाम बातें लिखी मगर कभी तुम्हें सम्पूर्ण रूप से काग़ज़ पर उतार नहीं पाई.. मगर दिल में तो तुम पूर्ण रूप से ही उतरे हो।
कहने का आशय यह है कि तुमसे मोहब्बत तो मैंने पूर्ण रूप से की है मगर उसको शब्दों में हमेशा ही अधूरा ढाल सकी हूँ। कितना भी लिख लूं मुझे कम ही लगता है।
मैंने कभी तुमसे फ़रमाइश भी नहीं कि.. लिख कर भी नहीं।हाँ, मगर आज दिल चाहता है तुम्हें फ़िज़ूल ही सही मगर बेतकल्लुफ़ ज़िद कर बुलाने का, और जब तुम आ जाओगे, तो भागकर सबके सामने तुम्हारे गले लग जाने का।
हाँ! तुमसे कहना कुछ नहीं है बस इतना ज़रूर चाहती हूँ कि लड़खड़ा जाऊँ तो कुछ वक़्त के लिए तुम मुझे सम्भाल लेना। शायद मैं बिल्कुल उस परवाने की तरह हो गई हूँ। जिसे अपना हश्र मालूम तो होता है, मगर फिर भी उसे शमा के करीब जाना होता है। तो यह भी कहाँ मुमकिन है कि तुम सामने आओ और मैं तुम्हें चोरी से ही सही मगर देखूँ नहीं। कहाँ मुमकिन है कि मेरी नज़र तुम पर जाए तो ठहरे ही नहीं। तुम्हें आँखों में भर लेना ग़लत तो नहीं। राह चलते अचानक ही ठहर जाना और तुम्हारी मौजूदगी की वाहिमा करना.. हर दफ़ा जलना ही तो है।
मगर मोहब्बत को हक़ है की ये जो मोहब्बत मेरी रूह में परवान चढ़ रही है इसे बिना पंखों के उड़ने देने का, या मेरे अंत का।
मुझे बहुत पसंद है चाँद को निहारना, चलते हुए टकटकी लगाए निहारना तो और भी ज़्यादा पंसद है। तुम्हें पता है.. मैं जब छोटी थी तो हमेशा चाँद को देखते हुए चलती थी, मुझे लगता था वो भी मेरे साथ चल रहा है। इस वज़ह से गिरी भी हूँ, बहुत बार टकराई भी हूँ। ऐसे ही मुझे पसन्द है तुम्हें निहारना, जब तक आँखों से ओझल ना हो जाओ तब तक निहारते रहना।
शायद, अब तुम में और चाँद में मुझे फ़र्क़ महसूस नहीं होता। दोनों ही मुझे अज़ीज़ हैं और दोनों को ही मैं कभी पा नहीं सकती।
हाँ! मगर, निहार सकती हूँ दूर से.. बहुत दूर से।
~रूपकीबातें
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