हिन्दी दिवस-हिन्दी विवश
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हिन्दी दिवस, हिन्दी दिवस,
क्यों अब भी है हिन्दी विवश।
अंग्रेजियत की शान में,
आधुनिकता के अभिमान में,
पथ से परे छिटकी हुई,
उपेक्षित और कुचली हुई,
जी रही है सिसक सिसक,
हिन्दी दिवस, हिन्दी दिवस।
सवाल करता,मुंह चिढ़ाता,
याद दिलाने हर वर्ष आता,
क्यों कहते हो मातृभाषा,
देते क्यों झूठी दिलासा,
अब तो करो बस।
हिन्दी दिवस, हिन्दी दिवस।
✍🏽मुक्तेश्वर सिंह मुकेश