🌿अस्थाई🌿

आस्थाई सोच ने तोड़ा एक एक हिस्सा मेरा था,
ना जाने क्यों फिर भी ढूँढे, तुझमें ही मन..जो मेरा था।

पूछें आँखे टक टकी लगा कर कहाँ है पल जो मेरा था,
पर वो ना देखे मेरी ओर कभी...जो उतरा मुखड़ा मेरा था।

सभी रुक गई बोली थी झुक गया प्रेम का परचम था,
दीवारों के भी कान थे बंद घर उदासियों का डेरा था।

जितना उलझूँ मैं सोच तले, उतना भागे वो मुझसे था।
समझे की बस एक हिस्सा था, जो मेरा ही बस क़िस्सा था।

#अस्थायी

Hindi Poem by Pranjali : 111568500

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