तुम ज्योत हो कुलदीपक की।
अंधेरो से तलुक्कात मत किया करो।।

तुम ज्ञान हो संसार की किताब का।
खुद का पन्ना खुद ही लिखा करो।।

जो नजरें तुम मिलाती हो खुद से।
आसमानों में वेसी नजरें मिलाया करो।।

वो बंजर किस गांव की जमीं।
तुम पौधा उगाके सत्यपान करो।।

अंबर के घने बादलों में नजर उठाओ।
हर रश्ता कैलाश का दिख भी लिया करो।।
સૌરભ સંહિતા માંથી......

-Kailas

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