तक़दीर के पन्ने ख़ाली हैं,
और भरे हैं हाथ लकीरों से

टूटते है तो बहुत चुभते है
क्या कांच ? क्या ख्वाब ? क्या रिश्ते ?

मेरी बहुत कमियां निकालने लगे हो आजकल
आओ जरा एक नजर आईने से तो मिलाकर देखो...

-Pravin Prajapati

Hindi Shayri by Pravin Prajapati : 111566906

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