मंजिले अपनी अपनी
रास्ते अपने अपने
फिर भी बन जाता ही है कारवा
सोच अलग हो सकती है दोनो की
तो कैसे राह जुदा हो सकती है दोनो की
अपने खाब अलग है मंजिले नही
बस एकबार देर है सोचने की

Marathi Shayri by Dhanshri Kaje : 111565955

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