इन्सान को इन्सान का, कभी लक्षण नहीं भाया;
कभी मोटा नहीं भाया,कभी पतला नहीं भाया ।

कभी श्वेत नहीं भाया,कभी अश्वेत नहीं भाया ;
कभी हँसना नहीं भाया,कभी रोना नहीं भाया ।

कभी समतल नहीं भाया, कभी पर्वत नहीं भाया;
कभी झरना नहीं भाया,कभी समुंदर नहीं भाया ।

कभी जननी नहीं भाई,कभी पिता नहीं भाये ;
कभी पुत्री नहीं भाई,कभी पुत्र नहीं भाया ।

कभी शासन नहीं भाया,कभी प्रशासन नहीं भाया;
कभी बहिन नहीं भाई,कमी भाई नहीं भाया ।

कभी अंधेरा नहीं भाया,कभी उजाला नहीं भाया;
इन्सान को इन्सान का,लक्षण नहीं भाया ।।


#लक्षण

Hindi Poem by Asha Saraswat : 111564409

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