करवटें बदलतीं रही रात भर,
सोचते हुए बीत गयी उम्र यूँही,
तितली की तरह उड़ती रहती थी वो,
नन्हे से पर फेलाए आसमान में यहाँ से वहाँ,
सपनो को सजाए नन्ही आँखो में,
नहीं था जमाने का डर बाबुल की छाँव में,
बरसात की बंदो को हथेली में थामे,
फूलों की खुस्बु को तन में भरें,
ऊछल रही थी यहाँ वहाँ,
आया एक खुस्बुदार जोंका हवा का ले गया साथ अपने,
क्यूँ काटे पर ?? जमाने के डर से ओ बाबुल,
तेरी ही तितली थी खुस्बु बनके बस घुल जाती तेरे घर में....