अपने बचपन को बचपन की तरह जीना,
सबसे बड़ी चुनौती बन गई है आज।
प्रतिस्पर्धा के इस दौर में बचपन कहां बचा है आज।।
हर तरफ जीतने की होड़ है, न जाने जैसे यह कौन सा बोझ है।
बच्चे के हार जाने पर अभिभावक को अपनी बेइज्जती लगती है।
पर जीत का मजा भी तो हार के बाद यह आता है ।
ना जाने क्यों आज का अभिभावक यह भूल जाता है।।
लगे हैं हर तरफ बस जितने की होड़ में।
हार का मजा भी तो कोई ले इस प्रतिस्पर्धा के दौर में। ।

स्वाति सिंह साहिबा

Hindi Poem by Swati Solanki Shahiba : 111560477

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