त्याग दी है आदतें फिजूलखर्ची और लापरवाहियों की।
समझ आ गई है हमें मुश्किल समय की जरूरतों की।
अभी भी जो नहीं सुधरे ,जरूरत है उन्हें सुधर जाने की।
नहीं तो महंगी पड़ेगी ये आदतें है जो बेपरवाहियों की ।

Hindi Poem by Archana Gupta : 111560160

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