न जाने क्या हुआ, जो तूने छू लिया,
खिला गुलाब की तराह मेरा बदन,
निखर निखर गई, सँवर सँवर गई,
बना के आईना तुझे ऐ जान-ए-मन
न जाने क्या हुआ, जो तूने छू लिया...

बिखरा है काजल फ़िज़ा में, भीगी भीगी हैं शामें
बूँदों की रिमझिम से जागी आग ठंडी हवा में
आजा सनम ये हसीं आग हम ले दिल में बसा
न जाने क्या हुआ, जो तूने छू लिया,
खिला गुलाब की तराह मेरा बदन,
न जाने क्या हुआ, जो तूने छू लिया...

आँचल कहाँ मैं कहाँ हूँ, ये मुझे होश क्या है
ये बेखुदी तू ने दी है, प्यार का ये नशा है
सुन ले ज़रा, साज-ए-दिल गा रहा है नग्म़ा तेरा
न जाने क्या हुआ, जो तूने छू लिया
खिला गुलाब की तराह मेरा बदन
न जाने क्या हुआ, जो तूने छू लिया...

कलियों की ये सेज महके, रात जागे मिलन की
खो जाए धड़कन में तेरे, धड़कनें मेरे मन की
आ पास आ तेरी हर साँस में, मैं जाऊँ समा
न जाने क्या हुआ, जो तूने छू लिया
खिला गुलाब की तराह मेरा बदन
निखर निखर गई, सँवर सँवर गई
बना के आईना तुझे ऐ जान-ए-मन
न जाने क्या हुआ, जो तूने छू लिया..

-Het Bhatt Mahek

Gujarati Poem by Het Bhatt Mahek : 111556119

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