बेखबर कुछ ऐसे थे हम
देख ही ना पाएं उनकी फितरत को
दोस्त, अपने सब कहते रहे पर
आंखें खोल ना पाई भरोसेकी पट्टी को

कुछ सुराग़ तो हमे भी मिले थे जनाब
पर सोचा छोड़ दू खेल ये वक्त पर
सोचा ही नहीं था कभी दिलने मेरे
के वक्त ही पलटवार करेगा ऐसे मूड कर

काश...!
काश मान लेते उस वक्त बात दिमाग़ की
पर हमने दिल की गवाही को परे रखा
तकलीफ़ बस इस बात की रहेगी
की आखरी सांस तक हमनें इंतज़ार किया
और उसने पलभर भी हमें मुड़कर नहीं देखा

#बेख़बर

Hindi Poem by Smile : 111551520
Ketan Vyas 4 years ago

https://www.matrubharti.com/bites/111551465

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