बरसो राम धड़ाके से...!!
(साहिर लुधियानवी)
बरसो राम धड़के से
बुढ़िया मर गई फाँके से
कलजुग में भी मरती है
सतजुग मे भी मरती थी
ये बुढ़िया इस दुनिया में
सदा ही फाँके करती थी
जीना उसको रास ना था
पैसा उसके पास ना था
उसके घर को देख के
लक्ष्मी मुड़ जाती थी नाके से
बरसो राम धड़ाके से
झूठे टुकड़े खाके बुढ़िया
तपता पानी पीती थी
मरती है तो मर जाने दो
पहले भी कब जीती थी
जय हो पैसे वालों की
गेहूँ के दल्लालों की
उन का हद से बढ़ा मुनाफ़े
कुछ ही कम है डाके से
बरसो राम धड़ाके से
रचनाकार--साहिर लुधियानवी