अक्षयपात्र

हरिप्रसाद एक मध्यमवर्गीय परिवार से था जो कि बी.काम अंतिम वर्ष में अध्ययनरत था। एक दिन वह अपने मित्र जो कि शासकीय अस्पताल में भर्ती था उसे देखने के लिए गया था। वहाँ उसने महसूस किया कि ऐसे अस्पतालों में गरीब लोग ही आते है और जनसुविधा के नाम पर बहुत ही सीमित सुविधाएँ उन्हें उपलब्ध होती है। उसके मित्र का दोपहर के भोजन का समय हो गया था और उसे संतुलित आहार अस्पताल के माध्यम से प्रदान किया जाता था।
उसका मित्र जब भोजन कर रहा था तो उसके बगल में लेटे हुए दूसरे मरीज के परिवार का एक बच्चा अपनी माँ से भूख लगने की बात कहकर भोजन देने के लिए कह रहा था परंतु उसकी माँ उसे हर बार चुप करा देती थी शायद उसे पास भोजन खरीदने के लिए रूपये नही थे। हरिप्रसाद को यह दृश्य बहुत द्रवित कर रहा था। उसने अपने मित्र से पूछा कि क्या यहाँ पर मरीजों के साथ आने वालों के लिए भोजन की व्यवस्था नही है ? उसके मित्र ने यह सुनकर कहा कि यहाँ मरीजों को ही भोजन प्रदान किया जाता है उसके साथ आये हुए लोगों को बाहर अपनी व्यवस्था स्वयं करनी पडती है। यदि आपके धन खर्च करने की क्षमता है तो आप भोजन खरीद कर खा सकते है अन्यथा आपको स्वयं ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी।
कुछ समय पश्चात हरिप्रसाद वापस आ जाता है परंतु उसके मन में यह चिंतन चलता रहता है कि ऐसे गरीब व्यक्तियों के लिए जो अपने परिजनों के इलाज के लिए अस्पताल आते है उनके भोजन के लिए भी कुछ व्यवस्था की जानी चाहिए। हरिप्रसाद के पास साधन बहुत सीमित थे फिर भी उसने अपने मित्रों के साथ मिलकर गरीब मरीजों के परिजनों को निःशुल्क भोजन उपलब्ध कराना प्रारंभ कर दिया।
इस जनसेवा की खबर जब शहर के समाज सेवी संगठनों तक पहुँची तो उन्होने इसकी विस्तृत जानकारी लेने हेतु हरिप्रसाद को अपने पास बुलाया। उसकी कार्ययोजना को सुनकर वे सभी बहुत प्रभावित हुए और हरिप्रसाद के अनुरोध पर वे भी इस जनहितकारी कार्य में अपना सहयोग देने के लिए सहमत हो गये। अब यह कार्य और भी विस्तृत और सुचारू रूप से होने लगा था और इस कार्य की महत्वता को देखते हुए एक उद्योगपति ने भोजन वितरण की सुविधा हेतु एक मारूति वेन प्रदान कर दी।
हरिप्रसाद ने अपनी सेवा के विस्तार को देखते हुए एक ट्रस्ट की स्थापना कर की जिसका नाम अक्षयपात्र रखा गया। धीरे धीरे इस योजना का विस्तार दूसरे शासकीय अस्पतालों में भी हो गया। इस प्रकार एक छात्र की दृढ इच्छा शक्ति, लगन और समर्पण की भावना ने जनसहयोग से एक अविस्मरणीय कार्य संपन्न करके दिखा दिया।

Hindi Story by Rajesh Maheshwari : 111544696
Rama Sharma Manavi 4 years ago

अत्यंत सुंदर

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