#विरासत
देवताओं के इंजिनियर,बाबा विश्वकर्मा जिन्होंने भूलोक में आकर राजमहलों से लेकर आम घरो का अभिकल्पन डिजाइन तैयार  किया।ब्रह्माजी के प्रपौत्र वास्तुकार विश्वकर्मा को ही सर्वप्रथम सृष्ठि निर्माण में वास्तुकर्म करने वाला कहा जाता है।इन्द्रलोक से स्वर्गलोक सहित भूलोक और पाताललोक के राजमहलों से लेकर प्राचीनतम  मन्दिर देवालय नगर तथा ग्रामीण आवासो का निर्माता विश्वकर्मा को ही कहा जाता है।हिन्दू धर्म अनुसार,विश्वकर्मा जी को निर्माण का देवता माना जाता हैं।देवता, दानव और मनुष्य  आदि को छत प्रदान करने वाले शिल्पी और वास्तुकार विश्वकर्मा ही माने जाते है।आपको बता दें कि सोने की लंका का निर्माण,विश्वकर्मा जी ने ही किया था। ये एक हस्तलिपि कलाकार थे। जिन्होंने हम सभी को कलाओं का ज्ञान दिया।प्राचीन आर्याव्रत यानि भारत को विश्वकर्मा की ही यह वास्तुकला धीरे-धीरे सारे संसार में  फैली है और आज भी हमारा वास्तुविज्ञान किसी भी निर्माणाधीन संरचना के लिए खंगाला जाता है। https://youtu.be/PLoEMeY99gQ

प्राचीनकाल में वैदिक युग से त्रेतायुग और द्वापर युग तक राजाओं की  जितनी राजधानियां, मन्दिर  देवालय और प्रमुख नगर थे, प्रायः सभी  देवताओं के वास्तुविशेषज्ञ विश्वकर्मा की ही बनाई कही जाती हैं।

यहां तक कि सतयुग का स्वर्गलोक, त्रेतायुग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलयुग का हस्तिनापुर आदि विश्वकर्मा द्वारा  ही रचित और निर्मित हैं।

सुदामापुरी की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। इससे यह आश्य लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है।

ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11रचनाएं लिखी हुई है। महाभारत के खिल भाग सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानतें हैं। स्कंद पुराण प्रभात खण्ड के निम्न श्लोक की भांति किंचित पाठ भेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता हैः-
बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः॥16॥महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पुर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ।पुराणों में कहीं योगसिद्धा, वरस्त्री नाम भी बृहस्पति की बहन का लिखा है।शिल्प शास्त्र का कर्ता वह ईश विश्वकर्मा देवताओं का आचार्य है, सम्पूर्ण सिद्धियों का जनक है, वह प्रभास ऋषि का पुत्र है और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र का भानजा है। अर्थात अंगिरा का दौहितृ (दोहिता) है। अंगिरा कुल से विश्वकर्मा का सम्बन्ध तो सभी विद्वान स्वीकार करते हैं। जिस तरह भारत मे विश्वकर्मा को शिल्पशस्त्र का अविष्कार करने वाला देवता माना जाता हे और सभी कारीगर उनकी पुजा करते हे।उसी तरह चीन मे लु पान को बदइयों का देवता माना जाता है।विश्वकर्मा अपने तत्काल  और रातोरात ही  राजमहलों की संरचना और भू,खण्ड पर इमारत  खडा करने में सिद्धहस्त थे। देवतागण-यक्षगण  मनुष्य और राक्षण सभी उनकी सेवायें और आशीर्वाद लेकर आजके वास्तुविज्ञान तक पहुंचे है।यही कारण है कि  आज प्रत्येक शिल्पी, मिस़्त्री  राज, बढई,कारीगर तथा अभियंता,तकनीकी  विषेषज्ञ साल मे एक बार अवश्य बाबा विश्वकर्मा की पूजा करते है।काशी में आज भी मौजूद है इनकी मन्दिर जहाँ भगवान अपने काम मे व्यस्त है। देखे मेरे यूट्यूब चैनल पे....


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