वो कमी में जीना भी
कहां था अधूरा !

हां मिला था कुछ कुछ तब
पर कितना वो भाता था
कितना कुछ मन ये पाता था

वो मिला कुछ कुछ भी
कितना पूरा लगता था
उसकी महक
उसका स्वाद
उसका अहसास
आज़ भी ज़हन को
पूरा भरे हुए है

आज़ जब
सब कुछ है
सब पूरा भरा हुआ है
छलक रहा है
पर
चाहतें सारी
अहसास सारे
खाली हो गए हैं
खोखले हो गए हैं
बेस्वाद हो गए हैं

अब तो ख्वाहिश है कि
कुछ कमी हो
और
कुछ खाली जगह बने
इस मन में
और
धीमें धीमें से
कुछ अहसास
कुछ चाहतें
कुछ अरमान
कुछ ज़ुनून
पलें भीतर
भरें भीतर

:- भुवन पांडे

#कमी

Hindi Poem by Bhuwan Pande : 111540563

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