अनुराग भर व्याकुल थे तन जो कभी,
हो गये वो मन बैरागी, ऐसा लगता है।

धीमीसी आहट तेरी कहां खो गयी,
सुना सुना हर लम्हा, ऐसा लगता है।

हिज्र मे बदले पुनः प्रीत के सावन,
प्रेम कहां होता अमर? ऐसा लगता है।

टूट चुके लफ्ज़ों के पुल दरमियाँ अब,
हो गये हम फिर तन्हा, ऐसा लगता है।

दूर होगये पास आकर चांद रात में,
क्या पता कल ना मिले, ऐसा लगता है।

अनन्य रोष, रंजीशे तुझपे मेरे किंतु,
तुझसा ना मिले दुजा, ऐसा लगता है।

Hindi Poem by अनु... : 111539657

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