देखा है।




लाभ को लोभ बनते देखा है
अपनों को अपनों से लड़ते देखा है

गैरत तो अब रही नहीं, मैंने उसे भी मरते देखा है ।

ख़ामोशी में भी शोर होते देखा है
किसी दूसरे की क्या अपनों को मुंह मोड़ते देखा है ।

हिस्सा की तलाश में, मां-बाप को छोड़ते देखा है ।

थोड़ी सी जमीन और कागज के चंद नोट के लिए
भाई को भाई से लड़ते देखा है।

सब धोखा है फिर भी परिवार बिखरते देखा है ।

जुल्म है या अपना अधिकार
घर में खड़ी होती दीवार को देखा है

मैंने वो सब देखा, जो शायद सभी ने ना देखा है ।

यह सब खुद के लिए है
या फिर अपने परिवार के लिए

अपनी नजर में मैंने, खुद को मरते देखा है ।

#Arjuna Bunty.
#matrubharti
#worldwide

Hindi Poem by Arjuna Bunty : 111538191

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