रूम की दीवार का खिड़की के बाहर आसमान से गहरा संबध है। यह बात मुझे बहुत समय बाद पता चली । इस रूम में मुझसे पहले भी कोई रहता था। शायद उसने रूम के भीतर चुप्पी साधे जीवन को कभी नहीं देखा होगा। जो मैंने गहन एकांत को खिड़की से आती शाम की रोशनी में देखा है। रूप की दीवार और खिड़की से मेरा संबध अब मध्य है। इसमें एकांत एक संवाद के रूप में शामिल है। जब पहली बार किसी ने रूम की खिड़की को खोला होगा। उस दिन शाम दिन के चले जाने से पहले पेड़ के पत्तियों से होते हुए रूम में प्रवेश किया होगा और दाेनो की पहली मित्रता हुई होगी। हर शाम से पहले खिड़की का खुलना और शाम के खत्म होने के बाद दरवाजा बंद कर देना उस संबध की मधूरता को बढ़ा दिया होगा। रूम में रहते हुए कई महीनों बाद मैंने दीवार पर खिड़की से आती रोशनी को देखा था. दोनाें के सवांद को कान लगाकर सुनने लगा। उस दिन मैंने रूम में अपने निजी एकांत की आवाज को महसुस किया, जिसे अपने पुराने रूम में छोड़ आया था। पहले एक स्वार्थ से शाम को खिड़की खोलता की मुझे रोशनी में एकांत नजर आएगा। लेकिन बाद में यह जीवन का हिस्सा बन गया। अब 4 बजते ही सभी शाम का इंतजार करते है। जब कभी आसमान में बादल होते। हम रूम में शाम की रोशने के वियोग में समा जाते है। जब रोशनी रूम में होती है हम सभी उत्सव मनाते है। हम में रूम, एकांत, खिड़की और मैं शामिल होते है। जब भी रूम पर लिखता हूं। आने वाली शाम में उसे पढ़कर सुनाता हूं। इसमें अकेला नहीं होता. हम सब शामिल होते है। 🌸