स्त्रियों को कभी समाज नहीं छलता
छलती है उसे वो देहरी
जिसके लिए वो अपने कदम
चौखट के भीतर खींच लेती है
वो लक्ष्मण-रेखा ...जो स्वयं उसने
अपने लिए खींच ली..
छलते हैं वो रिश्ते..जिन्हें
वो प्रेम और विश्वास का खाद-पानी
देकर इस उम्मीद में सहेजती है
कि जीवन की संध्या- बेला में
इनकी छाँव जीवन भर का ताप हर लेगी
छलता है वो इकलौता पुरुष
जो सप्तपदी का मखौल बना
संतुष्ट करता है सिर्फ अपना अहम
सारी वर्जनाओं का निर्धारण कर स्त्री के लिए
जीता है स्वच्छंद जीवन
स्त्रियां इस छलना को नियति मान
ढोतीं हैं जीवन-पर्यन्त
और नियति को बदलने का प्रयत्न
करने वाली स्त्रियों का
समाज मे कोई स्थान नहीं होता.....
-मधुमयी

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Hindi Poem by Mohini Rani : 111536455
Priyan Sri 4 years ago

स्त्री जीवन का कटु सत्य 😔😔

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