यूँ बार बार उपहास ना बना ऐ ज़िंदगी,
किसी रोज़ तो सुकूँ की नींद सुला दे..
खुशियां जो स्याह चादर ओढ़ चुकी है,
एक ज़िन्दगी जो मुझमे दम तोड़ चुकी है..
अब गिरा दे या उठा दे,
बना दे या मिटा दे,
बना ले जितना उपहास बना ले..
अब हवाएं भी अपना रुख मोड़ चुकी है..
एक ज़िन्दगी जो मुझमे अब दम तोड़ चुकी है..
#उपहास