प्रेम

प्रेम
आत्मा को उज्ज्वल
करता हुआ
विस्तार देता है
संकुचन नहीं,

विचारों को
परिष्कृत करता हुआ
उदार बनाता है
विकृत नहीं

प्रेम
व्यक्तित्व को
सहज करता हुआ
सरल बनाता है
जटिल नहीं ,

जीवन में
विश्वास जागता हुआ
उसे सुंदर बनाता है
विद्रूप नहीं

प्रेम यदि
आत्मा को
करता है संकुचित
विचारों को
करता है विकृत
व्यक्तित्व को
बनाता है जटिल
जीवन को
बनाता है विद्रूप
तो फिर ..
वो प्रेम नहीं !

# डॉ जया आंनद

Hindi Poem by Dr Jaya Anand : 111534465

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