दर्द की धुन पे थिरकती जा रही हैं जिंदगी।
समेटी नहीं जाती बिखरती जा रही हैं जिंदगी।।
रोज रोज बहुत कोशिश करता हूं जीने की।
मगर रोज रोज मरती जा रही हैं जिंदगी।।

Hindi Shayri by Satyendra prajapati : 111534096

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now