तेरे बिन जैसे बिन फसलें की खेती

बंजर सी खेती जान पड़ी

जब तू गया छोड़ मुझे ऐसा प्रतीत भई

तू आत्मा में शरीर पड़ी



बिन आत्मा शरीर पड़ी

उमड़ी कल थी मिट आज चली

तू जब आया मिलने को मुझसे

सारा जहां छोड़ तेरे पास चली



बातें तेरी जाल साज में फंसती में हर बार चली

उमड़ उमड़ कर मन मेरो, तुमसे मिलने की हर चाल चली।

तेरे यादें तेरी बातें सुनती में हर बार चली।



भूली बिसरी यादें ताजा करती मैं हर बार चली

तू जब गया छोड़ मुझे ,बिना आत्मा शरीर जान पड़ी

उमड़ी कल थी मिट आज चली मैं तो यह आज

जान पड़ी।
Maya

Hindi Poem by Maya : 111533130
Maya 4 years ago

Dhanybad ram ji

Maya 4 years ago

kya baat hai👏👏

Maya 4 years ago

Dhanybad sir

Er.Bhargav Joshi અડિયલ 4 years ago

तेरे संग रहकर मुजमे कुछ आदतें पड़ी, होश में भी मदहोश होने की आहते पड़ी। मै क्या था तेरे बिन इस रसधरा में यारा, तेरे होने से खुद को जानने की चाहते चडी।।

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