तम्बाकू

ना जाने कितनो का परिवार इसने छीन लिया
कैंसर से कितनो को यतीम किया
मज़ा तो उन्हें बहुत आया होगा
चुटकी और ताल ठोक कर
इस तम्बाकू को खाने में,
जवानी में इसे चवाने में
पर कहां पाता था उन्हें
ये उजाड़ रहा था घर
और परिवार जिसे
न जाने क्या क्या
कीमत न चुकाना पड़ता है
बसाने में।
दोस्तों
आप से मिन्नत ये ही
मै बार बार करता हूं
छोड़ दे तम्बाकू खाना
यही फ़रियाद करता हूं
किसी का भला कभी न
ये चाहा है
घर को उजाड़ना और
मौत ही इसको भाया है।
की इसको खाने से कोई
कहां बना है हीरो
जिम्मेदार कंधे टूट गए
वो बन गए जिंदगी में जीरो
अपने हुनर को दुनिया को
बताओ तुम
तम्बाकू को हाथ न लगना और
जीवन को बचाओ तुम
देश की तरक्की में
हाथ बढ़ाओ तुम।
धन्यवाद
#Arjuana Bunty

Hindi Poem by Arjuna Bunty : 111533032

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now