एक दूध की थैली और
एक अख़बार पड़ा होगा बरामदे में,
हमारे यहाँ हररोज़ दो जने आते ही आते है...

और कोई हो या न हो,
टूथ पेस्ट और टूथ ब्रश हमें ज़रूर हँसाते है।

देख़ लो यही है वह चाय का प्याला,
जिसका हम रोज़ नशा चढ़ाते है।

वैसे तो चुप ही रहते है दिनभर,
बरसता पानी और साबुन हमें खूब गवाते है।

कुछ बाल बनाए कुछ दिये जलाए, तैयार
है अब, ऐसे ही हम दिन गुज़ारते है...

© लीना प्रतीश

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