बचपन के वही खिलौने अभी भी रखे थे मैंने संदूकों में सभाल कर पता नहीं मै बड़ी हो गई हू या खिलौने ने अपनी कशिश खो दी
वो गुड़िया वो मेरी चाभी वाली जीप अब मुझसे पहले जैसे नहीं मिलते पता नहीं मै बेगानी हो गई या वो मुझसे अनजान हो गए खेल वही हैं खिलौने वही है ना मालूम वो बचपन की बेफिक्री कहा खो गई है , के थे पहले या अब नादान हो गए
-HURIYA SIDDIQUI