My Meaningful Poem ...!!!
रोटियाँ........!!!!!
क़ीमत रोटियों की
समजेगा क्या कोई
तीन दीनका भूखा
ग़रीब रोड़ पर पड़ी
कुत्ते-गाय के लिए
डालीं रोटी भी खा लेगा
एक माले-तूज़ार धनवान
बतीसी पकवान सजे हो
दस्तरख़ान पे पर मर्ज़ से
मजबूर न खा पाए लुक़मा
जूठा ख़ाना थाली में छोड़ना
अपनी शान समझनेवाले नादाँ
नादान बंदे क्या जानेंगे
रोटी की सही क़ीमत
कड़ी धूप में बड़ी मेहनत
मस्ककत से हल चला बोता
बीज ग़रीब मासुम किसान
करता आशा रब से ता कि
बारिशों की मबलख महेर हो
जल्द से ता कि फ़सल भी हो
शान-ए-कुदरत से चले
घर ग़रीब का भी आय से
तब कहीं जा के दाना
घेंऊ का बनता खेती से
पीसता चक्कीमें फिर
गुदतीं माँ बड़े चाव से
बैलती बेलन से सेंकती
तवे पर तब बनती रोटी
अक़्ल के अँधे दिखावे
की जूठी शान में क्या
बे-अदबी करते क़ुदरत
के नायाब इस तोहफ़े की
काश भूख की फ़ीटकार
पड़े इन्हें तो समज में आए
जानें नादाँ क़ीमत इतनी
मेहनत-औ-मस्ककतकी
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