नैतिकता
परमानंद जी एक सफल व्यापारी के साथ साथ राजनीति में भी गहरी पैठ रखते थे। वे अपने गृहनगर में भारी मतों से जीतकर एम.एल.ए भी बन गये थे। एक दिन मुख्यमंत्री जी ने अपने कार्यालय में किसी कार्यवश उन्हें बुलाया था। उस दिन दुर्भाग्य से परमानंद जी के निजी सेवक इमरतीलाल, जिसने उन्हें बचपन से पाल पोसकर बडा किया था, वह अचानक हृदयाघात के कारण अस्पताल में गंभीर अवस्था में भर्ती किया गये थे। परमानंद जी स्वयं उसकी देखभाल में व्यस्त थे और उन्होंने मुख्यमंत्री जी को संदेश भिजवा दिया था कि उनके निजी सेवक की तबीयत अधिक खराब होने के कारण वे उनसे नियत समय पर मिल पाने में असमर्थ है।
यह सुनकर मुख्यमंत्री जी काफी नाराज हो गये और सोचने लगे कि यह कैसा व्यक्तित्व है जिसके लिए मुख्यमंत्री से ज्यादा महत्वपूर्ण उसका नौकर है। इस घटना के कुछ समय बाद ही इमरतीलाल की तबीयत स्थिर हो जाने के पश्चात परमानंद जी मुख्यमंत्री जी के पास मिलने के लिये गये। मुख्यमंत्री जी ने मुलाकात के दौरान व्यंग्य करते हुए कहा कि आप बहुत बडे राजनीतिज्ञ हो गये है आपके लिए मुख्यमंत्री से ज्यादा महत्वपूर्ण नौकर है।
यह सुनकर परमानंद जी जो कि एक बहुत स्वाभिमानी और स्पष्ट वक्ता थे। उन्होंने निडर होकर जवाब दिया कि जिस व्यक्ति की गोद में बचपन में खेल कर मे बडा हुआ और जो आजतक मेरी देखभाल परिवार के सदस्य के समान कर रहा हो, उसकी तबीयत के विषय में समय देना मेरे लिए आप से मिलने से ज्यादा महत्वपूर्ण था। मै इस पद पर वैसे भी समाज के कल्याण एवं जनता की सेवा के लिए चुना गया हूँ। यदि आपको यह लगता है कि मेरे इस कृत्य से आपका अपमान हुआ है, तो मैं विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा भी दे सकता हूँ।
यह सुनते ही मुख्यमंत्री जी का पारा एक दम से ठंडा हो गया और वे हतप्रभ होकर परमानंद जी के चेहरे की ओर देखने लगे। उन्हें ऐसे स्पष्ट जवाब की अपेक्षा नही थी। उन्होंने इस्तीफा ना देने का अनुरोध करते हुए, दूसरे दिन मिलने के लिए कह दिया। दूसरे दिन मुलाकात होने पर उन्होंने परमानंद जी की तारीफ करते हुए कहा कि आप जैसे व्यक्तित्व आज के समय में बिरले ही होते हे। आपका निर्णय समय एवं परिस्थितियों के अनुसार एकदम सही था।