सुबह की खामोश गली,
रात को रंगीन बन गई,
बन गई वो बदनाम गली।
घुंघरू थमा दिये उन हाथ मे,
खिलोने खेलनेकी उम्र में,
थमा दिया लाली-पावडर,
पढ़ने-लिखने की उम्र में।
रौंदते है कई जिस्म के भूखे
उन कच्ची कलियो को
आहे भरती रही वो
दर्द से सिसकती रही
गुम हो गई वो आवाजे
उन रंगीनीया भरी रातों में,
कहती रही चीखे आखिर
क्युं बनी ये बदनाम गली। Neha