मंज़िल बहुत दूर हे ।
तुम अकेले चल शकों तो चलो ॥

हर मोड़ पे बुनियादी ठोकरें हे ।
तुम पार कर शकों तो चलो ॥

रास्ते बहुत ही हे दुनिया के ।
तुम अपना ढूँढ शकों तो चलो ॥

वो रंगीन ख़्वाब, वो तुम्हारी नादानी ।
तुम त्याग शकों स्वार्थपरता तो चलो ॥

ना दिन का उजाला, ना रातों का अंधेरा ।
महेसुस ना कर शकों तो चलो ॥

अंबर चूमे कैलाश के पथ पर ।
तुम बिखर ना शकों तो चलो ॥

Hindi Poem by Saurabh Sangani : 111522820

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