⚫ बारिश ⚫

बारिश आईं थीं पर यु ही रुक गई
कहीं बरसी तो कहीं चुक गई

बहोत खुश हुआ जब पहली बूंद मेरे आंसू में मिल गई
ओर पसीना पोछती हुई हवा जैसे सिने तक उतर गई

पर अब क्यु रुक गई ये धरती तो आधी प्यासी रेह गई
सफर 4महिनो का था ओर इतनी जल्दी ये थक गई

ज्योतिष ने कहा समुद्र से निकलीं है लगता है रास्ता भटक गई
सुबह सपने में भी आईं थीं पर न जाने कहाँ अटक गई

वो काले बादल यही आते थे और ये हवा कहीं ओर ले गई
खेतों में खर्चा भी कर दिया है ओर ये तो धोखा दे गई

कितना सोच के रखा था जगाई हुई उम्मीद भी सो गई
में भी थक कर सो गया हु जैसे मन की मन में रेह गई

सुबह,,,
एक कडाके की आवाज मुझे नींद से जगा गई
फिर ये क्या,,? चमकती बिजली और बूंदोकी बौछार हुई
ओर फिरसे वो बेहती हवा ओर बारिश भी आ गई ।
....

Hindi Poem by D.r. Chaudhary : 111522432

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