लगभग हरेक ऑफिस में कुछ ऐसे सहकर्मी होते हैं जो अपनी उपस्थिति मात्र से नकारात्मकता का माहौल पैदा कर देते हैं। ये कविता इन्हीं तरह के नकारात्मक प्रवृति के व्यक्तियों के प्रति समर्पित है।  

ऑफिस में भूचाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।

आते हीं आलाप करेगा,
अनर्गल प्रलाप करेगा,
हृदय रुग्ण विलाप करेगा,
भाँति भ्रांति अशांति सन्मुख,
जी का एक जंजाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया ।

अब कोई संवाद न होगा,
होगा जो बकवाद हीं होगा,
अकारण विवाद भी होगा,
हरे शांति और हरता है सुख,
सच में हीं बवाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।

कार्य न कोई फलित हुआ है,
जो भी है, निष्फलित हुआ है,
साधन भी अब चकित हुआ है,
साध्य हो रहा, हार को उन्मुख,
कुकर्म घृणित महाकाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।

धन धान्य करे संचय ऐसे,
मीन प्रेम बगुले के जैसे,
तुम्हीं बताओ कह दूं कैसे,
कर्म बुरा है मुख भी दुर्मुख,
ऑफिस में फिलहाल आ गया,
हाँ फिर से चांडाल आ गया।

कष्ट क्लेश होता है अक्षय, 
हरे प्रेम बढ़े घृणा अतिशय,
शैतानों की करता है जय,
प्रेम ह्रदय से रहता विमुख,
कुर्म वाणी विकराल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।

कोई विधायक कार्य न आये,
मुख से विष के वाण चलाये,
ऐसे नित दिन करे उपाय,
बढ़े वैमनस्य, पीड़ा और दुख,
ख़ुशियों का अकाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।

बतलाये खुद को वो ज्ञानी,
पर महाचंड वो है अज्ञानी,
मूर्खों में नहीं कोई सानी,
सरल कार्य में धरता है चुक,
बुद्धि का हड़ताल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया,

आफिस में भुचाल आ गया ,
देखो फिर चांडाल आ गया।

Hindi Poem by Ajay Amitabh Suman : 111521580

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