ये जो ज़मीं से ज़रा दूर चलकर आसमां तक पहुंच कर
फिर उसी ज़मीं पर हस्ते हो ना,
तो तुम्हे इतना बता दूं कि हमेशा आसमाँ में रह कर भी मैने इन बादलों को
मीलों बेवज़ह चलते देखा है।
और आज गुमां है तुम्हे जिस आसमान का,
उसी आसमान को मैने इस ज़मीं के लिए बरसों से तरसते देखा है।
और जो घमंड हो फिर भी तुम्हे अपने आसमाँ में होने का तो ये भी मान ही लो कि,
इस ज़मीं से मिलने की चाहत में यूँ इन बादलों से बिछड़ कर,इन बूंदों को बेमौसम बरसते तो तुमने भी देखा है।

Hindi Shayri by Akash Saxena

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